सरफ़रोश

खुरचन खाके भी हौसला नहीं टुटा,

साथ नाह रहे मगर कभी कारवाह नहीं छूटा,

एक लहर क्या उठी झूट की े सरफ़रोश;

तेरा हौसला भी टुटा तेरा घरौंदा भी छूटा |

ना जाने वो खुश दिली के लम्हे कब आएंगे,

जब हर रंग के पक्षी एक शाख पे बैठ के गाएंगे;

की दुश्मन रहा है हर दौर हमारा,

हम बुलबुले है इसकी येह गुलिस्तां हमारा |

खुरचन खाके भी हौसला नहीं टुटा,

है आग फैली नफरत की सियासत में,

की अपना माकन भी छूटा, अपना वतन भी छूटा | 

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