मायूसी

मैं तो सिर्फ मुसाफिर हु इस दुनिआ में यारो कुछ वक्त का

मुझे क्या सरोकार इस दुनिआ की बनायी दीवारों से, नकली उसूलो से,

मुझे तोह मंज़र नज़र आता है इंसानियत का हर जगह मगर खुआब सा लगता है यह ख़याल शायद,

क्या अभी दिलो को गुलज़ार करने वाली मोहब्बत पनपती थी यहाँ,

येह चश्मा ज़रा मैं उतारलो अपने पाठ्यक्रम का जो बचपन में मुझे स्कूल में बताया गया था लगती थी वह दुनिआ हसी,

जीनो को दिल करता था हमेशा यह, मौत से मुझे लगता था डर बहुत,

मगर अब जी उठा उस इसकी हकीकत में देखता हु लोगो की गिरती साख और उभरती हुई नफ़रतें,

नजाने वह किताबे हकीकत से इतनी दूर क्यों लगती है

क्या इल्म से दुनिआ दूर लगती है, सोचा नहीं था की ज़िन्दगी इतनी सख्त हो गई,

इसकी असलियत कुछ और होगी, आज करता है दिल रुक्सत होजाने को,

दिल करता है दी कही खो जाने को, रूह तोह चाहती है परवाज़ हो जाने को,

मगर जिस्म कहता है एक और लम्हा जीके देख शायद यही मिल जाये तुझे जन्नत तेरी

मायूस ना हो ना मांग मौत की भीक, ज़िन्दगी तोह चाँद दिनों का मेला है न आएगा येह फिर कभी,

चले गए अफ़सोस किया बगैर कुछ किये काम अनोखे, बर्बाद होजायेगी नस्ले तेरी,

सर उठा कदम बरदह कर कुछ काम ऐसा की हर ज़ार्रा नावाज़ दे तुझको,

जा मर जाने तू करके अपने अमाल सही, याद रखेगी तारीखे इस दुनिया की

के आया था कोई शख्स जो कर गया काम अनोखे |

हरकत कर अपने बदन में ज़रा, लगा ज़ोर अपने ज़ेहन का,

कर चल कुछ काम ऐसे याद रखे नस्ले अन्य वाली, की अफ़सोस करे येह दुनिया तेरी मौत पे

और ज़र्रा ज़र्रा जी उठे देखे के काम तेरे |

काम कर कुछ काम कर इंसानियत के लिए तू काम कर, मर ना जाना तू नाकाम होकर काम तोह कर कुछ काम तोह कर ै इंसान तू काम तोह कर, मायूसी के तू जाम न भर |

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